
भारत की जाति व्यवस्था हिन्दू धर्म की वर्ण व्यवस्था का ही एक रूप हैं | प्राचीन काल से ही समाज का वर्गीकरण पेशेवर आधार पर किया जाता रहा हैं |
ऐसे में ब्राम्हण वर्ण समाज के सर्वोच्य स्तर पर माना जाता रहा हैं, तथा शूद्र वर्ण निम्नतम स्तर पर | इसके अतिरिक्त भी पांचजन्य नाम के अन्य वर्ग थे, जो दलित, आदिवासी इत्यादि जातियाँ थीं जिसका वास्तविक हिन्दू समाज में कोई स्थान ही नहीं था |
स्वतंत्रता के पश्चात समाज में समानीकरण स्थापित करने की दृष्टी से आरक्षण व्यवस्था लागू की गई, जिसके माध्यम से विभिन्न जातियाँ का वर्गीकरण अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पिछड़ा वर्ग में चिन्हीकरण किया गया |
इस व्यवस्था के तहत चुनावों में शैक्षणिक संस्थाओं में तथा राजकीय नियुक्तियों में आरक्षण की व्यवस्था की गई |
विभिन्न सरकारी आदेशों तथा माननीय सर्वोच्च – न्यायलय द्वारा की गई व्याख्या के अनुसार अनुसूचित जाति को 15% अनुसूचित जनजाति को 75% तथा अन्य पिछड़ा वर्ग के अभ्यर्थियों को 27% आरक्षण देने की व्यवस्था हैं |
17-R17